जैविक और प्राकृतिक खेती में मुख्य अंतर
“जैविक” और “प्राकृतिक” खेती (Natural & Organic Farming) में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
- उपयोगिता और प्रक्रिया:
- “जैविक खेती” एक खेती प्रक्रिया है जो केवल प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करती है, जैसे कि जीवाणु, पोषक तत्व, और संशोधनित उर्वरकों का निषेधन करती है।
- “प्राकृतिक खेती” भी प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करती है, लेकिन इसमें कुछ सामग्री का आलंब रखा जा सकता है, जैसे कि अल्टर्नेटिव उर्वरक या प्राकृतिक पेस्टिसाइड्स का उपयोग किया जा सकता है।
- उत्पादन मानक:
- “जैविक खेती” की खेती और उत्पादन में एक स्पष्ट जैविक मानक का पालन किया जाता है, और यह मानक जैविक सर्टिफिकेशन संगठनों द्वारा प्रमाणित किया जाता है।
- “प्राकृतिक खेती” भी प्राकृतिक मानकों का पालन करती है, लेकिन यह मानक कम सख्त होते हैं और अधिक लचीले हो सकते हैं।
- पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों का उपयोग:
- “जैविक खेती” में केमिकल पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों का कोई उपयोग नहीं होता, और खेती में जीवाणुओं, पौधों, और प्राकृतिक स्रोतों से मिलने वाले पोषक तत्वों का उपयोग होता है।
- “प्राकृतिक खेती” में पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों का अधिक बड़ा गुणवत्ता नियमित रूप से उपयोग किया जा सकता है, लेकिन वे जीवाणुओं और जैविक सामग्री के साथ मिलाए जा सकते हैं।
- खेती की सुरक्षा:
- “जैविक खेती” का उपयोग केवल प्राकृतिक पोषक तत्वों और प्राकृतिक तरीकों से होने के कारण बेहद सुरक्षित माना जाता है, और यह किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण के लिए अधिक सुरक्षित हो सकता है।
- “प्राकृतिक खेती” में अधिक खेती सामग्री का उपयोग किया जाता है, जिससे पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों की ज्यादा आवश्यकता हो सकती है, इससे किसानों की सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- उत्पाद की मान्यता:
- “जैविक खेती” के उत्पाद किसानों और उपभोक्ताओं के बीच में ज्यादा मान्यता प्राप्त कर रहे हैं, क्योंकि इसमें जीवाणुओं, पोषक तत्वों, और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।
- “प्राकृतिक खेती” के उत्पाद भी मान्यता हासिल कर सकते हैं, लेकिन वे ज्यादातर पेस्टिसाइड्स और उर्वरकों के उपयोग के कारण कम मान्यता प्राप्त कर सकते हैं।
इन अंतरों के बावजूद, जैविक और प्राकृतिक खेती दोनों ही खेती प्रणालियों के रूप में महत्वपूर्ण हैं और उनका उपयोग उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यपूर्ण और पर्यावरण के लिए साइकलोजिकल सस्तृति की दिशा में किया जा रहा है।
दुनिया भर में जैविक और प्राकृतिक खेती के कई तरीके हैं। भारत में, सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (जिसे पहले शून्य बजट प्राकृतिक खेती के नाम से जाना जाता था) भारत में प्राकृतिक खेती का सबसे लोकप्रिय मॉडल है, जिसे आंध्र प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा लागू किया गया है। पद्मश्री पुरस्कार विजेता सुभाष पालेकर द्वारा विकसित, इस कृषि पद्धति को केंद्र की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 700 से अधिक गांवों में अपनाया गया है और इससे कई किसानों को लाभ हुआ है। भविष्य के लिए कृषि के लिए एक पर्यावरण-अनुकूल और टिकाऊ दृष्टिकोण के रूप में मानी जाने वाली, सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग (एसपीएनएफ) को लाखों वैश्विक अनुयायियों द्वारा स्वीकार किया जाता है।
प्राकृतिक खेती के कई फायदे सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती (एसपीएनएफ) प्रणाली में देखे जा सकते हैं:
- पौधों को 98% पोषक तत्व हवा, पानी और सूरज की रोशनी से मिलते हैं।
- देशी गायों के गोबर और गोमूत्र का उपयोग खाद बनाने के लिए किया जाता है।
- देशी बीजों का प्रयोग
- जैव संस्कृति जीवामृत (देसी गाय का मूत्र और गोबर का मिश्रण) मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाता है।
- वानस्पतिक अर्क के माध्यम से कीट प्रबंधन।
- थोड़ा पानी। कम बिजली
- खरपतवार आवश्यक हैं और जीवित या मृत गीली घास की परतों के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
- लाइव मल्चिंग और स्ट्रॉ मल्चिंग ह्यूमस निर्माण में मदद करते हैं, खरपतवारों को दबाते हैं और फसलों के लिए पानी की आवश्यकता को बनाए रखते हैं।
- अंतरफसलन कीटों और बीमारियों के लिए एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है।
- पॉलीक्रॉप्स (छोटी अवधि और लंबी अवधि की फसलें एक साथ उगाना) मिट्टी के स्वास्थ्य और लचीलेपन को सुविधाजनक बनाते हैं, और बीमारियों को कम करते हैं। मुख्य फसल की लागत कम अवधि की फसलों से होने वाली आय से वहन की जाएगी और इसलिए इसमें कम लागत शामिल है।
- रूपरेखा और बाँध भूमि के जल जनित कटाव को कम करते हैं।
- मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए गहरी मिट्टी में देशी केंचुआ प्रजातियों को प्रोत्साहित करता है।
- देशी गाय के गोबर और मूत्र की अनुशंसा की जाती है क्योंकि इनमें लाभकारी सूक्ष्म जीव होते हैं।